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पुरुषार्थ क्या है ?

आज उत्तर आधुनिक युग में एक प्रश्न अपना विस्तार यह  कर रहा है कि पुरुषार्थ क्या है ? भारतीय चिंतन में मोक्ष परम पुरुषार्थ है | इससे पहले पुरुषार्थ को जानना अति आवशयक है ... पुरुषार्थ शब्द का प्रोग कभी - कभी हम घनघोर परिश्रम , कठिन उद्यम के अर्थ में भी करते हैं | किन्तु वह इसका गौण अर्थ है | इसका मूल अर्थ है --- पुरुषै : अर्थ्यते इति ... जो मनुष्यों द्वारा चाहा जाए | इसमें कोई संदेह नहीं कि मनुष्य का सबसे काम्य है अर्थ | अनुभव बतलाता है कि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन का महत्त्व बहुत है | अतः अर्थ को भारतीय चिंतकों ने एक पुरुषार्थ के रूप में स्वीकार किया है | यह भी स्पष्ट है कि अर्थ साधन है  साध्य नहीं  हो सकता | इसलिए यह बाहरी है हमें पहचानता नहीं है |सुख की पहली अनुभूति होती है इन्द्रियों का संयोग | जिसे काम से जाना जाता है विषयों के उपभोग के साथ - साथ साहित्य , संगीत , नृत्य , नाट्य , चित्र आदि के उपभोग के द्वारा प्राप्त सुख को भी काम पुरुषार्थ के अन्तर्गत रखा गया है | आज के भूमंडलीकरण और उदारीकरण तथा उत्तराधुनिक जीवन शैली के प्रभाव से हमारा समाज जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा रु

दशहरा उत्सव में अध्यक्षता के रूप में डॉ . इन्द्र सिंह ठाकुर

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आचार्य विष्णुकांत शास्त्री पुरुस्कार at DHARAMSHALA, YOUVA LEKHAN MANCH

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वशिष्ठ साहित्य सम्मान at TEJPUR ASSAM

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की समृति एवं आज़ाद हिन्द सर्कार की 75वीं वर्षगांठ ROTARY TOWN HALL THE MALL SHIMLA

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Book Vomochan Vichar Shabd Ke Aar Paar

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हिंदी साहित्य का इतिहास पुस्तक का विमोचन at Centre of Excellence, Govt. College Sanjauli, Shimla-171006, H.P.

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